featured poet
Sanjeev Sethi
बड़ा होना
संजीव सेठी की कविता ‘ग्रोइंग अप’ का हिन्दी अनुवाद
Growing Up
Freedom doesn’t come
by living in different cities.
Freedom comes by amputating
emotional connections.
Today, they can all
be my neighbours—
it wouldn't disturb me.
Families are only for funerals.
It's okay by me.
I’ve finally grown-up.
बड़ा होना
आज़ादी अलग-अलग शहरों में
रहने से नहीं आती,
आज़ादी आती है
भावनात्मक सम्बन्धों के अंग-विच्छेद से
आज वे सभी मेरे पड़ोसी हो सकते हैं—
मुझे इससे कोई परेशानी नहीं।
परिवार केवल अंत्येष्टि के लिए हैं।
यह मेरे लिए ठीक है।
आखिरकार मैं बड़ा हो गया हूँ।
featured poet
Shamayita Sen
उम्र के साथ
शमयिता सेन की कविता 'विद ऐज' का हिंदी अनुवाद
With Age
Age softens you to the bone like,
poems and pulses soaked overnight
Fear creeps into a widows old age
as blood thirsty vigilante relatives plot
at grabbing her share of ancestral home,
or pass it off as disputed property
उम्र के साथ
उम्र आपको हड्डियों तक नरम कर देती है
कविताओं
या रात भर भीगी हुई दालों की तरह
डर रेंगता है विधवा के बुढ़ापे में
जैसे जैसे खून के प्यासे
सतर्क रिश्तेदार रचते हैं षड्यंत्र
उसके पैतृक घर के हिस्से को हड़पने का
या उसे विवादित संपत्ति की तरह आगे धकेलने का
featured poet
Paresh Tiwari
विरह
परेश तिवारी की हाइबुन ‘सैपरेशन' का हिंदी अनुवाद
उस दिन तुमने सब समेटा
तर्क, झगड़े
बड़े करीने से उन्हें तह किया
ग्लानि की करारी सिलवटों के साथ
तुमने उन्हें एक सूटकेस में भरा और चल दिए
पीछे छोड़ते हुए
खाली क़तारें हैंगरों की
जिस पर मैं लपेटता हूँ
लाचार चुप्पी
मैं हर रात अपने शरीर को छीलता हूँ
कसैली कॉफी
दिन के चाँद से अंकुरित होती
तुम्हारी अनुपस्थिति
featured poet
Vinita Agrawal
लेकिन एक फूल
विनिता अग्रवाल की कविता 'बट अ फ्लावर' का हिंदी अनुवाद
मुझे पच्चीस साल बाद मिलता है
वेबस्टर शब्दकोश के पन्नों के बीच दबा - एक फूल
यह अब एक पिचकी हुई मकड़ी की तरह दिखता है
बिंदु जैसा शरीर, पैरों जैसे दिखते - पतले पुंकेसर
एक - आयामी और कागजी
एक रिश्ते के अंत की तरह।
सुर्ख पीले रंग से
जंग जैसे भूरे रंग का हो गया
दर्द से फड़फड़ाता है, हल्के से स्पर्श पर
टूटे हुए दिल की तरह
शब्दकोश के सभी अच्छे शब्द भी
न समेट सके उसे
वह धंस गया सिलवटों के क्लौस्ट्रफ़ोबिया में
अब वह वनस्पति नहीं, जीव जैसा दिखता है
वनस्पति विज्ञान नहीं प्राणी विज्ञान
उस प्रेम की तरह जो पोषित नहीं होता
अब सोचती हूँ
कोई भी इसे लैपल पर नहीं पहनेगा
गुलदस्ते में नहीं सजाएगा
इससे गालों को नहीं सहलाएगा
या डूबेगा इसकी सुगंध में
इसने अपना अस्तित्व खो दिया है
जिस तरह चीजें खोती हैं, जब समय पर छोड़ दी जाएं
काश यह एक फूल ही रह जाता
एक मृत फूल, लेकिन एक फूल।
featured poet
Sukrita Paul Kumar
ज़मीन के ऊपर
अज़ान के स्वर गूंज उठते हैं
भोर के धुँधलके में ...
ज्यों ही प्रकाश की किरणें प्रवेश करती हैं
गहरे स्लेटी बादलों में
जो अध-बैठे हैं, मुड़े घुटनों पर
नमाज़ अदा करने को
आसमान में
चिड़ियाएँ रात की निद्रा तोड़
अपने पंख फड़फड़ाती
घोंसलों से फुदक कर बाहर आती हैं
चाँद के नाज़ुक वक्र पर झूलती,
जप रही हैं चंद्र मास की चौदहवीं रात को
आकाश से लटक रहीं हैं
खुले कोष्ठक में पड़ी प्रार्थनाएं
इस क्षण
इस सुबह
सुकृता पॉल कुमार की कविता ‘अबव द ग्राउंड’ का हिन्दी अनुवाद
translation & art: teji sethi
केन्या में जन्मी सुकृता पॉल कुमार वर्तमान में दिल्ली में रहती हैं, कविता लिखना, शोध करना और साहित्य सिखाने के अतिरिक्त उनकी कई रुचियां हैं। वे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम, आयोवा विश्वविद्यालय (यूएसए), कैम्ब्रिज सेमिनार और भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, शिमला की एक पूर्व फेलो रही हैं। सुकृता हांगकांग बैपटिस्ट विश्वविद्यालय, चीन में रेजिडेंट कवि के रूप में आमंत्रित की गयी थी। सुकृता के प्रमुख महत्वपूर्ण कार्यों में नैरेटिंग पार्टीशन, कन्वर्सेशनस ऑन मॉडर्निज्म, द न्यू स्टोरी, मैन एंड वुमन एंड्रोग्नी शामिल हैं। वे द इयर बुक ऑफ़ इंडियन पोएट्री इन इंग्लिश की सह संपादक हैं।
featured poet
Joshnaa Banerjee Adwanii
अलविदा होते समय ....
अलविदा होते समय
आँख, आँख में डालोगे तो बहेंगे अश्रु
हाथ, छुएगा हाथ तो देह न हिल सकेगी
पाँव पाँव न आगे बढ़े तो रास्ते कठिन लगेंगे
अलविदा होते समय
दिखाना स्वयं को किंचित हठी
अट्टहास करना
अलविदा होते समय
अर्धशव न बनना।
अरे ....
अरे! परंतु यह किस प्रकार संभव है
किस प्रकार लज्जा रहेगी मन में
किस प्रकार मौन के लिए जगह बनाई जाए
घावों को सूर्य तक किस प्रकार ले जाया जाए
तारापथ को देखते हुए किस तरस स्वप्न सच हों
किस प्रकार जनहीन जगहों पर घर बनाऊँ
औलुक्य से कैसे करू मित्रता
किस प्रकार बांग्लाभाषी होते हुए मछलियों की रक्षा करूँ
अरे! मुझे क्यों धकेला इस ग्रह पर ?