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हाइकु

हाइकु मूल रूप से जापानी कविता है। हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति की परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और हाइकु वहीं पली है। हाइकु में अनेक विचार-धाराएँ मिलती हैं - जैसे बौद्ध-धर्म (आदि रूप, उसका चीनी और जापानी परिवर्तित रूप, विशेष रूप से जैन सम्प्रदाय) चीनी दर्शन और प्राच्य-संस्कृति। यह भी कहा जा सकता है कि एक "हाइकु" में इन सब विचार-धाराओं की झाँकी मिलती है या "हाइकु" इन सबका दर्पण है। हाइकु को काव्य विधा के रूप में बाशो (१६४४-१६९४) ने प्रतिष्ठा प्रदान की। हाइकु मात्सुओ बाशो के हाथों संवरकर १७ वीं शताब्दी में जीवन के दर्शन से जुड़ कर जापानी कविता की युगधारा के रूप में प्रस्फुटित हुई। आज हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व साहित्य की निधि बन चुकी है।

हाइकु की सरंचना 

  • हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है।

  • बिंब समीपता - दो बिम्बों की तुलनात्मक क्रिया हाइकु संरचना का मूल लक्षण है। इस से पाठक को रचना के भाव में अपने आप को सहिकारी बनाने की जगह मिल जाती है।

  • हाइकु कविता तीन पंक्तियों में लिखी जाती है। इंग्लिश लैंग्वेज हाइकु में पहली पंक्ति में ५ सिलेबल, दूसरी में ७ सिलेबल और तीसरी पंक्ति में ५ सिलेबल, इस प्रकार कुल १७ सिलेबल होते हैं । हाइकु अनेक भाषाओं में लिखी जाती हैं; लेकिन वर्णों या पदों की गिनती का क्रम अलग-अलग होता है। तीन पंक्तियों का नियम सभी में अपनाया जाता है।

  • ऋतुसूचक शब्द (कीगो) - एक अच्छी हाइकु में ऋतुसूचक शब्द आना चाहिए। लेकिन सदा ऐसा हो, यह जरूरी नही। हाइकु, प्रकृति तथा प्राणिमात्र के प्रति प्रेम का भाव मन में जगाता है। अत: मानव की अन्त: प्रकॄति भी इसका विषय हो सकती है।

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