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पीठें



फेरी हुई

हर पीठ पर अंकुरित होती है

इक कविता

एहसान है उन पीठों का

जो मुझ पर फेरी गयीं

वरना ज़मींदार की छठी बेटी

होने के बावजूद

ना आता मेरे हिस्से ज़मीन का

कोई भी टुकड़ा

अपने हिस्से आयी पीठों पर

मैंने जोते खेत

और बोयी शब्दों की वो फ़सले

जो आज तृप्त करतीं हैं

उन आत्माओं को

जिनके हिस्से भी आयीं

फेरी हुई पीठें


तेजी


पॉल कौर की कविता “अ वाइल्ड वीड” से प्रेरित

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