सुना है
उत्तर भारत के कुछ क़स्बों में
नवजात बच्चियों के मुँह में
रख दिए जाते थे
चुटकी भर चावल
जो बच्ची की लार के साथ गीले होते
और फूलते जाते
कुछ ही घंटों में बच्ची का दम घुट जाता
कुछ वर्ष पहले यूँ ही
किसी ने मेरे मुँह में रखी
एक चुटकी भर सोच
जिसे मैं अपना मान चबाती रही
धीरे धीरे उसका पसाव
पहले मेरे शरीर में पहुँचा
फिर जमने लगा
मेरी धमनियाँ में
संकुचित होती धमनियों में
भला कैसे बहते मुक्त शब्द?
पर यदि शब्द ही श्वास हो
तो आदमी पूरी जुगत लगा देता है
उन्हें पाने के लिए
पूरे १३ वर्षों के अंतर्द्वंद्व के बाद
मुझे मिले मेरे शब्द
इस बार मैने रखी किसी के मुँह में
अपने शब्दों की चुटकी
और यूँ हुआ
एक करीबी रिश्ते का गर्भपात
तेजी
Chawal ki chunti - beautiful poem and your words seem to glide down my soul. Thank you!!