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क्षणिकाएं - momentary poems

Updated: May 3

by Vaibhav Joshi


'आइ ऍम नॉट एनफ टू नो' में प्रकाशित




व्यापकता


पुराने पाषाणों पर बने

चित्र जैसे पढ़ो मुझे...

ऐसी कोई भाषा नहीं

जो मुझे लिपि में अभिव्यक्त करे...



हमसायगी


अनजान होते हैं

एक दूसरे से

साथ-साथ बड़े होते

वो पेड़...

जिनकी जड़ें आपस में

एक दूसरे को

सींचती हैं...



मान


हम दोनों

एक दूसरे में

सीमित हैं...

सिर्फ प्रेम ही

हमारी मात्रा

एक दूसरे में

बढ़ा सकता है...



ख़लिश


जिन पर

सब से ज़्यादा

लिखा गया...

मेरे

वो साल

कोरे ही रहे...




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